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Thursday, July 22, 2021

अवसर


 आशाएं अब हाथ पसारे
चलो ढूँढते शुभ कोना।
दूषित मन की इस नगरी में
बीज प्रेम का फिर बोना।

अम्बर के आनन में बैठा
 उजास रवि अंतस करता।
तमस मिटाने आती रजनी
चंदा शीतल मन भरता।
घोर निशा जीवन में आए
तम से आतुर मत होना।
आशाएं......

बाधाओं की गठरी फेंको
भय को रखदो ताले में।
हिम्मत के फिर तोरण लेकर
चलो लगाएं आले में।
मन का आँगन ठोस बनाओ
नहीं पड़ेगा फिर रोना।
आशाएं......

आज चेतना मन की जागी
कण्टक पथ पीछे छूटा।
बरसों से जो शीश रखा था
गिर कुरीत पत्थर फूटा।
हाथ फैलाए खड़ा अवसर
देख इसे अब मत खोना।
आशाएं.....
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार


5 comments:

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  2. वाह बेहतरीन सृजन

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

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