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Friday, July 16, 2021

पलायन

आग पेट की आज जलाए 

कलह मचाकर अति दुखदायन।

संतोष मिटा मेटे खुशियाँ

भूख बनी है ऐसी डायन।


चूल्हे खाली हांडी हँसती

अंतड़ियाँ भी शोर मचाए।

तृष्णा सबके शीश चढ़ी फिर

शहरी जीवन मन को भाए।

समाधान से दूर भागते

चकाचौंध के डूब रसायन।

आग....


बंजर होती मन की धरती

विपदा जब-तब खेत उजाड़े

प्रलोभनों के बीज उगी अब

खरपतवारें कौन उखाड़े

माटी की सब भीतें ढहती

आँगन आज नहीं सुखदायन।

आग..


खलिहानों की सिसकी सुनकर

रहट नहीं आवाजें देता।

कर्ज कृषक की खुशियाँ छीने

झोली अपनी भरते नेता।

दुख हरने जीवन के सारे

कब आओगे हे नारायण

आग...


बैलों की घण्टी चुप बैठी

दिखता नहीं बजाने वाला।

अंगारों पर बचपन सोता

गले पहन काँटो की माला।

सूखी माटी पर हल चीखें

कोई रोके ग्राम पलायन।

आग....

©® अनुराधा चौहान'सुधी'✍️

चित्रकार-रेणु रंजन गिरी

12 comments:

  1. सच , पेट की आग ही तो पलायन पर मजबूर कर देती है ।
    बहुत संवेदनशील

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

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  2. अंगारों पर बचपन सोता
    गले पहन काँटो की माला।
    सूखी माटी पर हल चीखें
    कोई रोके ग्राम पलायन।
    मर्मस्पर्शी सृजन अनुराधा जी !

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  3. बहुत बहुत सुंदर रचना दीदी

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  4. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (19-07-2021 ) को 'हैप्पी एंडिंग' (चर्चा अंक- 4130) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  5. ग्रामीण जीवन का सजीव चित्रण

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    1. हार्दिक आभार आ.अनीता जी।

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  6. Replies
    1. हार्दिक आभार आ.संदीप जी।

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