मन वीणा के तार हो तुम
धड़कन की आवाज़ हो तुम
तुमसे ही यह ज़िंदगी है
जीवन का हर साज हो तुम
मुरझाया मन का रजनीगंधा
खिल उठा जो तूने छुआ
स्पर्श के एहसास से भींगे
खुशियों के हर रंग हो तुम
रोम-रोम तुमसे ही महके
तुमसे ही यह जीवन चहके
साँसों की सरगम तुमसे
जीवन का हर गीत हो तुम
तुम मेरे मन के दर्पण हो
तुझमें ही मेरा अक्स घुला
झील के ठहरे पानी में
चाँद का प्रतिबिंब हो तुम
***अनुराधा चौहान***
मधुर मधुर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 06 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर सखी,
ReplyDeleteसमर्पित नेह भावों वाली सरस शृंगार रचना।
हार्दिक आभार सखी 🌹
Deleteहार्दिक आभार सखी 🌹
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteप्रेम भाव से सराबोर
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteसार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर भाव
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत ही सुंदर ,सरस ,मनभावन रचना सखी
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी 🌹
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना...
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