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Friday, October 4, 2019

साँसों की सरगम

मन वीणा के तार हो तुम
धड़कन की आवाज़ हो तुम
तुमसे ही यह ज़िंदगी है
जीवन का हर साज हो तुम

मुरझाया मन का रजनीगंधा
खिल उठा जो तूने छुआ
स्पर्श के एहसास से भींगे
खुशियों के हर रंग हो तुम

रोम-रोम तुमसे ही महके
तुमसे ही यह जीवन चहके
साँसों की सरगम तुमसे
जीवन का हर गीत हो तुम

तुम मेरे मन के दर्पण हो
तुझमें ही मेरा अक्स घुला
झील के ठहरे पानी में
चाँद का प्रतिबिंब हो तुम
***अनुराधा चौहान***

14 comments:

  1. मधुर मधुर सृजन

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 06 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. वाह बहुत सुंदर सखी,
    समर्पित नेह भावों वाली सरस शृंगार रचना।

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  4. हार्दिक आभार सखी 🌹

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  5. बहुत सुंदर
    प्रेम भाव से सराबोर

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  6. सार्थक प्रस्तुति

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  7. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  8. बहुत ही सुंदर ,सरस ,मनभावन रचना सखी

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  9. बहुत ही सुन्दर रचना...

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