दिखावटी प्रेम के ओढ मुखौटे
झूठ मुलाकातों के सिलसिले चले
संवेदनाएं कहीं गुम सी होती
बातों में मिसरी सा स्वाद घुले
शर्तो के अनुबन्ध पर बंधे हर रिश्ता
पल मे अपना कभी पल में पराया
प्रेम की बदलती हुई परिभाषा
प्रेम त्याग भूल बस पाने की आशा
प्रेम में पथ पर छल के उजाले
भटकाते अँधेरों में मन भोले-भाले
फिर भी दिखावा कम नहीं होता
दिखावे में प्यार कहीं गुम होता
बेवजह होते झगड़े भरपूर
बिगाड़े हमेशा रिश्तों के रूप
बंजर होती भावनाएं मन की
खिलते कहाँ मनचाहे फूल
कपट के शूलों की नित्य चुभन से
रिश्ते लथपथ बेहाल पड़े
प्रीत पहले सी नजर न आती
शर्तों में ज़िंदगी अब बंधना नहीं चाहती
झूठ मुलाकातों के सिलसिले चले
संवेदनाएं कहीं गुम सी होती
बातों में मिसरी सा स्वाद घुले
शर्तो के अनुबन्ध पर बंधे हर रिश्ता
पल मे अपना कभी पल में पराया
प्रेम की बदलती हुई परिभाषा
प्रेम त्याग भूल बस पाने की आशा
प्रेम में पथ पर छल के उजाले
भटकाते अँधेरों में मन भोले-भाले
फिर भी दिखावा कम नहीं होता
दिखावे में प्यार कहीं गुम होता
बेवजह होते झगड़े भरपूर
बिगाड़े हमेशा रिश्तों के रूप
बंजर होती भावनाएं मन की
खिलते कहाँ मनचाहे फूल
कपट के शूलों की नित्य चुभन से
रिश्ते लथपथ बेहाल पड़े
प्रीत पहले सी नजर न आती
शर्तों में ज़िंदगी अब बंधना नहीं चाहती
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
जहाँ कोई शर्त हो वहाँ प्रेम हो नहीं सकता.
ReplyDeleteशानदार रचना.
मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है आपका 👉🏼 ख़ुदा से आगे
धन्यवाद आदरणीय
Deleteअब तो स्वार्थ की पाठशाला से मानव प्रेम और संवेदना की डिग्री लेकर लोग घुमने लगे हैं।
ReplyDeleteऐसे मुखौटाधारियों से बच कर रहने की आवश्यक है दी।
सुंदर रचना के लिये नमन
किस पर करें एतबार यहाँ
ReplyDeleteकितने मुखौटे चढ़ाए बैठे हैं लोग ,
जुबां पे शहद
दिल में नाखुन लिये बैठे हैं लोग ,
क्या दिखते क्या छुपाये बैठे हैं लोग।
वाह्ह्हृ बहुत खरी और सटीक रचना।
रिश्तों में प्रीत दम तोड़ती नजर आती
ReplyDeleteशर्तों में ज़िंदगी अब बंधन नहीं चाहती
सत्य वचन सखी ,सुंदर रचना ,सादर
हार्दिक आभार सखी 🌹
Deleteधन्यवाद श्वेता जी
ReplyDeleteइन बिखरी किर्चों की चुभन से
ReplyDeleteघायल होते फिर तन और मन
रिश्तों में प्रीत दम तोड़ती नजर आती
शर्तों में ज़िंदगी अब बंधन नहीं चाहती
बिल्कुल सही, कुछ लोग सिर्फ मतलब के लिए प्रेम करते हैं। ये भी प्रेम का एक रूप है - नकली रूप।
धन्यवाद मीना जी
Deleteप्रेम की बदलने लगी है परिभाषा
ReplyDeleteप्रेम अब त्याग नहीं, सिर्फ पाने की आशा
बहुत खूब... ,
धन्यवाद मीना जी
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(०३-०५-२०२०) को शब्द-सृजन-१९ 'मुखौटा'(चर्चा अंक-३६९०) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
ओढ़े दिखावटी प्रेम के मुखौटे
ReplyDeleteयह झूठे मुलाकातों के सिलसिले
संवेदनाएं मन की कहीं गुम हो गईं
बातों में सरसता छुप-सी गई
गहरी संवेदना लिए सुंदर सृजन ,सादर नमन अनुराधा जी
हार्दिक आभार सखी
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