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Friday, October 11, 2019

प्रेम के मुखौटे

दिखावटी प्रेम के ओढ मुखौटे
झूठ मुलाकातों के सिलसिले चले
संवेदनाएं कहीं गुम सी होती
बातों में मिसरी सा स्वाद घुले

शर्तो के अनुबन्ध पर बंधे हर रिश्ता
पल मे अपना कभी पल में पराया
प्रेम की बदलती हुई परिभाषा
प्रेम त्याग भूल बस पाने की आशा

प्रेम में पथ पर छल के उजाले
भटकाते अँधेरों में मन भोले-भाले
फिर भी दिखावा कम नहीं होता
दिखावे में प्यार कहीं गुम होता

बेवजह होते झगड़े भरपूर
बिगाड़े हमेशा रिश्तों के रूप
बंजर होती भावनाएं मन की
खिलते कहाँ मनचाहे  फूल

कपट के शूलों की नित्य चुभन से
रिश्ते लथपथ बेहाल पड़े
प्रीत पहले सी नजर न आती
शर्तों में ज़िंदगी अब बंधना नहीं चाहती
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

14 comments:

  1. जहाँ कोई शर्त हो वहाँ प्रेम हो नहीं सकता.
    शानदार रचना.
    मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है आपका 👉🏼 ख़ुदा से आगे 

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  2. अब तो स्वार्थ की पाठशाला से मानव प्रेम और संवेदना की डिग्री लेकर लोग घुमने लगे हैं।
    ऐसे मुखौटाधारियों से बच कर रहने की आवश्यक है दी।
    सुंदर रचना के लिये नमन

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  3. किस पर करें एतबार यहाँ
    कितने मुखौटे चढ़ाए बैठे हैं लोग ,
    जुबां पे शहद
    दिल में नाखुन लिये बैठे हैं लोग ,
    क्या दिखते क्या छुपाये बैठे हैं लोग।

    वाह्ह्हृ बहुत खरी और सटीक रचना।

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  4. रिश्तों में प्रीत दम तोड़ती नजर आती
    शर्तों में ज़िंदगी अब बंधन नहीं चाहती

    सत्य वचन सखी ,सुंदर रचना ,सादर

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  5. धन्यवाद श्वेता जी

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  6. इन बिखरी किर्चों की चुभन से
    घायल होते फिर तन और मन
    रिश्तों में प्रीत दम तोड़ती नजर आती
    शर्तों में ज़िंदगी अब बंधन नहीं चाहती
    बिल्कुल सही, कुछ लोग सिर्फ मतलब के लिए प्रेम करते हैं। ये भी प्रेम का एक रूप है - नकली रूप।

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  7. प्रेम की बदलने लगी है परिभाषा
    प्रेम अब त्याग नहीं, सिर्फ पाने की आशा
    बहुत खूब... ,

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  8. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(०३-०५-२०२०) को शब्द-सृजन-१९ 'मुखौटा'(चर्चा अंक-३६९०) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  9. ओढ़े दिखावटी प्रेम के मुखौटे
    यह झूठे मुलाकातों के सिलसिले
    संवेदनाएं मन की कहीं गुम हो गईं
    बातों में सरसता छुप-सी गई
    गहरी संवेदना लिए सुंदर सृजन ,सादर नमन अनुराधा जी

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