Followers

Wednesday, April 21, 2021

सोच का चक्रव्यूह


 जिस धरती ने हमें जीवन दिया
आज उस धरती पर 
हमारी निगेटिव सोच ने ही
वायरस को जन्म देकर
हमें
पॉजिटिव और निगेटिव
के चक्रव्यूह में फंसा दिया
और अब हम
अभिमन्यु की तरह
बाहर निकलने के
जी तोड़ प्रयास में लगे 
मगर रास्ता है कि हमें
नजर नहीं आता
चीखती रातें
सिसकियाँ भरते दिन
जलती आशाओं से
उठती धुएं की रेख
उखड़ती साँसों को थामें
मशीनों के अलार्म 
टेढ़ी-मेढ़ी भागती लाइनों में
ज़िंदगी की हलचलों को
ढूँढती
आँखों में नमी लिए 
निगेटिव विचारों से घिरी
हर पल ज़िंदगी सोचती 
क्या फिर पहले सी
लौट पाएगी हरियाली
जो जीवन और धरती
दोनों के लिए जरूरी थी
या यहीं से किसी और
मंज़िल का सफर शुरू होगा?
पल पल पॉजिटिव
सोच को खत्म करने की आदत से
मानवता आज खुद सहमी हैं
पॉजिटिव शब्द को सुनकर
सृष्टि की अनदेखी कर
आज हमने खुद को
 वहाँ खड़ा कर दिया है
जहाँ एक और कुआँ 
तो दूसरी और खाई नजर आती है।
©® अनुराधा चौहान'सुधी'✍️
चित्र गूगल से साभार


16 comments:

  1. हार्दिक आभार सखी

    ReplyDelete
  2. हम खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारे बैठे हैं । और अभी भी सतर्क नहीं हुए हैं।
    विचारणीय रचना ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया

      Delete
  3. बहुत सुंदर विचारणीय प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार ओंकार जी

      Delete
  4. जिस धरती ने हमें जीवन दिया
    आज उस धरती पर
    हमारी निगेटिव सोच ने ही
    वायरस को जन्म देकर
    हमें
    पॉजिटिव और निगेटिव
    के चक्रव्यूह में फंसा दिया

    बिलकुल सत्य कहा सखी,ये विचरणीय घडी है,जो विचरेगा वही इस धरा पर अपना आस्तित्व कायम रख पायेगा,सदर नमन

    ReplyDelete
  5. विचारोत्तेजक सृजन! सटीक बातें सखी बहुत सुंदर सृजन।

    ReplyDelete
  6. सामयिक ,विचारणीय सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया दी।

      Delete
  7. बहुत ही विचारणीय रचना 👌👌👌

    ReplyDelete
  8. बात ठीक है पर इस बात का रस्ता भी हम स्वयं खोजेंगे ...
    मिल भी जाएगा ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete
  9. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete