Followers

Friday, October 22, 2021

मंगल बेला


 करवाचौथ

मेहंदी रच के मुस्काती
बिंदिया माथे पर दमके।
कँगना बोले हाथों का फिर 
कुमकुम माथे शुभ चमके।

ढूँढ रहे कजरारे नयना
चंदा छुपकर मुस्काए।
लहराती चूनर जब सजनी
अम्बर का मन हर्षाए।
छनक रही पायल पैरों में 
धूम मचाती है जमके।
कँगना बोले……

वेणी बन झूले बालों में
पुष्प मोगरा भी महके।
देख समय की चंचलता को
पुरवा का मन भी चहके।
होंठों पर की लाली सजती
तार छेड़ती हर मन के।
कँगना बोले……

छलनी दीपक चढ़के बैठा
रूप सजाए मनभावन।
आस गगन का आँगन घूमे
आज दिवस सबसे पावन।
बदली पीछे हँसता चंदा
अश्रु हर्ष के जब छलके।
कँगना बोले……

चूड़ी खुश हो बोल उठी फिर
मंगल बेला है आई।
करवा हाथों में इठलाया
झूम रही है पुरवाई।
अर्घ्य चढ़ाने आतुर होती
सभी सुहागन बन-ठन के।
कँगना बोले.....

*अनुराधा चौहान'सुधी'*

15 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार ज्योति जी।

      Delete
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना रविवार २४ अक्टूबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार श्वेता जी।

      Delete
  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24 -10-21) को "मंगल बेला"(चर्चा अंक4227) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

    ReplyDelete
  4. सुंदर भाव भीनी रचना।
    करवाचौथ पर हार्दिक शुभकामनाएं सखी।🌷

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार सखी। आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं।

      Delete
  5. Replies
    1. हार्दिक आभार ज्योति जी।

      Delete
  6. वाह! बहुत खूबसूरत।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

      Delete
  7. वाह अनुराधा जी, बहुत सुदर रचना "छलनी दीपक चढ़के बैठा
    रूप सजाए मनभावन।
    आस गगन का आँगन घूमे
    आज दिवस सबसे पावन।
    बदली पीछे हँसता चंदा
    अश्रु हर्ष के जब छलके।
    कँगना बोले……"मनभावन। काश! कोई इसे सुरों में प‍िरो सकता।

    ReplyDelete
  8. हार्दिक आभार आदरणीय।

    ReplyDelete
  9. अंतर्मन से निकले भाव ...
    बहुत सुन्दर रचना है ....

    ReplyDelete