गुरु ज्ञान का उजाला बनकर करीब आए।
अज्ञानता भरी मन विज्ञान वो सिखाए।
भटके हुए इस मन में ठहराव कही नहीं था।
सीखे सबक हजारों अंधकार भी मिटाए।
छाए घटा घनेरी चपला हृदय डराए।
सागर सी मन व्यथाएं लहरों सी फनफनाए।
मन कुछ समझ न पाता जब अंधकार छाता।
तब धूप की चमक बन गुरुदेव रास्ता दिखाए।
जीवन की पाठशाला गुरु के बिना नही है।
जीवन की शिक्षा माँ से गुरु पहली बस वही है।
गुरुदेव देव तुल्य हैं यह बात माँ सिखाती।
देते पिता सबक यह गुरु ज्ञान जग सही है।
करते नमन हमेशा हम शीश को झुकाएं।
गुरु के बिना न मानव प्रभु को कभी न पाएं।
दभं तोड़ते हमेशा कटुता हृदय मिटाकर।
बस प्रीत हो हृदय में यह सीख ही सिखाएं।
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित