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Thursday, January 18, 2024

श्री राम चले अपने घर


 युगों युगों तक तरसी जनता
राम धाम के दर्शन को।
त्याग तपस्या का फल मिलता
देख बने अब मंदिर को।

विधना के भी खेल निराले
राम लला का घर छूटा।
देख पीर श्री राम लला की
जन-मन का हृदय टूटा।
विराम हुआ संघर्ष देख अब
राम नाम का कीर्तन हो।युगों युगों....

स्वर्ण द्वार सुंदर नक्काशी
रामभवन यह भव्य बना।
सुंदरता कुछ कही न जाय
सरजू तट शुभ भवन तना।
देव देखकर हर्षाते सब 
श्री राम चले अपने घर को। युगों युगों....

मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु के
धीरज का कोई अंत नहीं।
माया तज श्री राम को पूजे
कोई भरत सा संत नहीं।
पहन आभूषण राम चले घर
थाम धनुष सुदर्शन को। युगों युगों..

अनुराधा चौहान'सुधी

Tuesday, July 4, 2023

गुरु ज्ञान का उजाला


 गुरु ज्ञान का उजाला बनकर करीब आए।
अज्ञानता भरी मन विज्ञान वो सिखाए।
भटके हुए इस मन में ठहराव कही नहीं था।
सीखे सबक हजारों अंधकार भी मिटाए।

छाए घटा घनेरी चपला हृदय डराए।
सागर सी मन व्यथाएं लहरों सी फनफनाए।
मन कुछ समझ न पाता जब अंधकार छाता।
तब धूप की चमक बन गुरुदेव रास्ता दिखाए।

जीवन की पाठशाला गुरु के बिना नही है।
जीवन की शिक्षा माँ से गुरु पहली बस वही है।
गुरुदेव देव तुल्य हैं यह बात माँ सिखाती।
देते पिता सबक यह गुरु ज्ञान जग सही है।

करते नमन हमेशा हम शीश को झुकाएं।
गुरु के बिना न मानव प्रभु को कभी न पाएं।
दभं तोड़ते हमेशा कटुता हृदय मिटाकर।
बस प्रीत हो हृदय में यह सीख ही सिखाएं।

अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित 


Friday, February 10, 2023

जीवन का सच

फागुन जब लेता अँगड़ाई,पुरवाई तब महके।
पीली पीली सरसों फूली,देख उसे मन चहके॥खिलती कलियाँ झरते पत्ते,पतझड़ भी मनभाए।रंगों का अब मौसम आया,पुरवा गीत सुनाए॥

फाग महीना धूम मचाए,रंग खुशी के बरसे।
पिया मिलन की आस लगाए,प्रीत न कोरी तरसे॥
नवपल्लव डालों पर झूमे, लेकर मीठीं किस्से।
कल तक जो लहराते पत्ते,अब माटी के हिस्से॥

मधुमास बना चढ़ता यौवन, प्रेम के गीत सुनाता।
जीवन फिर ढलती काया ले,पत्ते सा झड़ जाता॥
यह जीवन की रीत पुरानी,मानो या मत मानो।
प्रेम बिना यह जीवन सूना,सच जीवन का जानो॥

अनुराधा चौहान 'सुधी'स्वरचित

Tuesday, September 13, 2022

हमारी शान है हिन्दी


  हमारी शान है हिन्दी हमारा मान है हिन्दी।
बनी सदियों यही मुखिया सदा सम्मान है हिन्दी॥

सहज ही हिन्द की बोली सदा सबको लुभाती है।
यही आधार है संगीत जीवनदान है हिन्दी॥

चलो हठ छोड़कर सारे बनाए सिर मुकुट इसको।
हमारे भाल की बिन्दी हमारी आन है हिन्दी॥

बसी सबके हृदय कोमल पुरानी प्रीत सी बनकर। 
सदा यह देव की वाणी सुरीली तान है हिन्दी॥

बड़े ही प्रेम से जोड़े पुराने टूटते नाते।
हमें है गर्व हिन्दी पर हमारी शान है हिन्दी॥
अनुराधा चौहान'सुधी'

Friday, August 12, 2022

अभिमान है तिरंगा


 जग में सदैव ऊँचा अभिमान है तिरंगा।
चलना सभी उठाकर अभियान है तिरंगा॥

हर ओर गीत गूँजे जयघोष दे सुनाई।
हर द्वेष को मिटाता वरदान है तिरंगा॥

हर रंग में बसी है अपनी अलग कहानी।
जग में अनेकता की पहचान है तिरंगा॥

जब वीर वार करके अरि शीश को झुकाए।
जय घोष गुनगुनाता जयगान है तिरंगा॥

सच है नहीं कहानी कहते बड़े पुराने।
उन वीर भारती का सम्मान है तिरंगा॥

बलिदान से महकती धरती सदा हमारी।
रखना सदा बचाकर यह मान है तिरंगा॥

©® अनुराधा चौहान'सुधी'

Tuesday, June 28, 2022

मौन की यात्रा

मौन ढूँढे नव दुशाला

व्यंजना के फिर जड़ाऊ।

यत्न करके हारता मन

वर्ण खोए सब लुभाऊ।


खो गई जाने कहाँ पर

रस भरी अनमोल बूटी

चित्त में नोना लगा जब

भाव की हर भीत टूटी

नींव फिर से बाँधने मन

कल्पना ढूँढे टिकाऊ।

मौन ढूँढे नव........


भाव का पतझड़ लगा जब

मौन सावन भूलता है।

कागज़ों की नाव लेकर

निर्झरों को ढूँढता हैं।

रूठकर मधुमास कहता

बह रही पुरवा उबाऊ।

मौन ढूँढे नव........


वर्ण मिहिका बन चमकते

और पल में लोप होते।

साँझ ठिठके देहरी पर 

देख तम को बैठ सोते।

लेखनी भी ऊंघती सी 

मौन की यात्रा थकाऊ।।

मौन ढूँढे नव........

*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*

Saturday, June 11, 2022

व्याधियाँ

 


मेटती सुख क्यारियों से

व्याधियाँ लेकर कुदाली।

क्रोध में फुफकार भरती

जूझती हर एक डाली।


आज बंजर सी धरा कर

कष्ट के सब बीज बोते।

मारती लू जब थपेड़े

चैन के मधुमास खोते।

दंड कर्मों का दिलाने

काल तब करता दलाली।

मेटती सुख....


नीलिमा धूमिल हुई नभ 

विष धुआँ आकार लेता।

रोग का फिर रूप देकर

विष वही उपहार देता।

काटते बोया हुआ सब

भाग्य के बन आज माली।

मेटती सुख....


व्याधियाँ नव रूप लेकर

बेल सी लिपती पड़ी हैं।

हाड़ की गठरी विजय का

युद्ध अंतिम फिर लड़ी है।

श्वास सट्टा हार बैठी

बोलती विधना निराली।

मेटती सुख....

©® अनुराधा चौहान'सुधी'✍️