Followers

Tuesday, June 16, 2020

मौन बोलता है

अँधियारे आँगन आ बैठा
अंतस मौन बोलता है।
नीर नयन गालों पे ढुलके
गहरे राज खोलता है।

सन्नाटे की चादर ओढ़े
रात अँधेरा गहराता।
यादों के ताने-बाने ले
कुछ धीरे से कह जाता।
आँख मिचौली खेले चन्दा
बादल बीच डोलता है।
अँधियारे आँगन आ बैठा
अंतस मौन बोलता है।

छोड़ गए साजन परदेशी
होंठों की मुस्कान गई।
विरह वेदना मुझको देकर ।
खुशियों की सौगात गई
उम्मीदों की बैठ तराजू 
मन को हृदय तोलता है।
अँधियारे आँगन आ बैठा
अंतस मौन बोलता है।

कली खिली थी मन बगिया की
सूख गई वो फुलवारी।
पतझड़ में बिखरे पत्तो सी।
बिखर गई खुशियाँ सारी।
पाषाण शिला सी मैं बैठी 
भाव हृदय टटोलता है।
अँधियारे आँगन आ बैठा
अंतस मौन बोलता है।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

14 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 17 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार यशोदा जी

      Delete
  2. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete
  3. अंतस की व्यथा को सुन्दर शब्द दिए हैं आपने ...
    सब जानता है ये अंतस मन से जुदा जो होता है ... इसकी सुनना जरूरी है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete

  4. नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 18 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  5. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete
  6. वाह!सखी ,बहुत खूबसूरत भाव लिए ,सुंंदर सृजन ।

    ReplyDelete
  7. आ अनुराधा चौहान जी, अंतर्मन की व्यथा का सुन्दर रेखांकन ! ख़ास कर ये पंक्तियाँ :
    ली खिली थी मन बगिया की
    सूख गई वो फुलवारी।
    पतझड़ में बिखरे पत्तो सी।
    बिखर गई खुशियाँ सारी। --ब्रजेंद्र नाथ

    ReplyDelete
  8. हार्दिक आभार आदरणीय

    ReplyDelete