अँधियारे आँगन आ बैठा
अंतस मौन बोलता है।
नीर नयन गालों पे ढुलके
गहरे राज खोलता है।
सन्नाटे की चादर ओढ़े
रात अँधेरा गहराता।
यादों के ताने-बाने ले
कुछ धीरे से कह जाता।
आँख मिचौली खेले चन्दा
बादल बीच डोलता है।
अँधियारे आँगन आ बैठा
अंतस मौन बोलता है।
छोड़ गए साजन परदेशी
होंठों की मुस्कान गई।
विरह वेदना मुझको देकर ।
खुशियों की सौगात गई
उम्मीदों की बैठ तराजू
मन को हृदय तोलता है।
अँधियारे आँगन आ बैठा
अंतस मौन बोलता है।
कली खिली थी मन बगिया की
सूख गई वो फुलवारी।
पतझड़ में बिखरे पत्तो सी।
बिखर गई खुशियाँ सारी।
पाषाण शिला सी मैं बैठी
भाव हृदय टटोलता है।
अँधियारे आँगन आ बैठा
अंतस मौन बोलता है।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 17 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार यशोदा जी
Deleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteअंतस की व्यथा को सुन्दर शब्द दिए हैं आपने ...
ReplyDeleteसब जानता है ये अंतस मन से जुदा जो होता है ... इसकी सुनना जरूरी है ...
हार्दिक आभार आदरणीय
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ReplyDeleteनमस्ते,
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 18 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteवाह!सखी ,बहुत खूबसूरत भाव लिए ,सुंंदर सृजन ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteआ अनुराधा चौहान जी, अंतर्मन की व्यथा का सुन्दर रेखांकन ! ख़ास कर ये पंक्तियाँ :
ReplyDeleteली खिली थी मन बगिया की
सूख गई वो फुलवारी।
पतझड़ में बिखरे पत्तो सी।
बिखर गई खुशियाँ सारी। --ब्रजेंद्र नाथ
अद्भुत लेखन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
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