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Wednesday, June 10, 2020

मोबाइल नशा

लगी है बीमारी बड़ी आज भारी
नयी नस्ल देखो मोबाइल की मारी

माँ-बाप,बेटे सभी घर में बैठे
मोबाइल के मारे रहे ऐंठे-ऐंठे

न माता की चिंता,न आँखों की परवाह।
सेल्फी पे गिनते हैं लोगों की वाह-वाह

कोई आँखें मींचे कोई दाँत दिखाता।
कोई काम कह दो, हमें कुछ न आता।

बनाकर के चेहरे बड़े टेढ़े-मेढ़े
लाइक और कमेंट ही डूबे रहते

कभी सब्जी जलती,कभी दूध उबलता।
अंदर से आरोप का लावा उफनता।

बड़ा ही अनोखा ये जादुई मोबाइल
घर बैठे-बैठे ही दुनिया दिखाई

विज्ञान की बात हो या इतिहास के पन्ने।
पहुँच जाते घर से ही सब कोने-कोने।

मगर ये बीमारी पड़ी आज भारी
दिन में सब सोते जगे रात सारी

गुलामी को इसकी खुद ही ओढ़ते हैं
स्वतंत्र जीवन से खुद मुख मोड़ते हैं

बड़ा ही बुरा अब आया जमाना
मोबाइल है दोषी नहीं किसी ने माना

नहीं संग हँसते न ही बोलते हैं
मोबाइल के सुख में सभी डोलते हैं

लगी है बीमारी बड़ी आज भारी
नयी नस्ल देखो मोबाइल की मारी
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

4 comments:

  1. बहुत खूब लिखा अहि ...
    मोबाइल एक बोमारी है पर कई बार इसका फायदा भी है ख़ास कर बुजुर्गों के अकेलेपन का साथी है ये ...

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  2. "नयी नस्ल देखो मोबाइल की मारी" ... नयी नस्ल को बीमारी नयी जरूर लगी हो मोबाइल को .. पर हर नस्ल को कोई ना कोई बीमारी लगती ही है ... इसके पहले वाले नस्ल को ट्रांजिस्टर की बीमारी थी और उसके पहले वाले को मुफ़्त की चाय पीने की ऐसी बीमारी पकड़ी कि देश् को 250 साल के लिए गुलाम ही करवा दिए ..☺

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    1. जी सही कहा आपने, इंसान खुद ही आदतों का गुलाम बनता है। हार्दिक आभार आदरणीय।

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