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Monday, January 24, 2022

मिट रही संवेदनाएं


 प्रीत रोकर मौन मन से
कह रही अपनी कथाएं।
छल-कपट की क्यारियों में
सूखती हैं भावनाएं।

वेदना व्याकुल हुई पथ
छटपटाती सी पड़ी है।
दर्प डूबी लालसाएं
शूल सी सीने अड़ी है।
रस बिना अब रंग खोती
प्रेम की सब व्यंजनाएं।
प्रीत रोकर.....

बेल सी बढ़ती कलुषता
चेतना ही लुप्त करती।
द्वंद अंतस में बढ़े फिर
सत्यता को सुप्त करती।
बोझ मिथ्या मन बढ़ा तो
मिट रही संवेदनाएं।
प्रीत रोकर.....

हृदय पट को मूँदकर ही
नेह सागर मौन होता।
बैर की बढ़ती तपिश में
चैन से अब कौन सोता।
स्वप्न आहत हो बिलखते 
आज सहकर वर्जनाएं।
प्रीत रोकर.....
©® अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार

14 comments:

  1. Replies
    1. हार्दिक आभार नितीश जी।

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  2. हर बंध लाजवाब...,मर्मस्पर्शी सृजन । बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति अनुराधा जी ।

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  3. बहुत सुंदर भावभरी तथा गीतमय रचना । गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं अनुराधा जी 👏🌹👏

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    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।

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  4. जीवन की कठिनाइयों को व्यक्त करता, दर्द से भरा बहुत ही सुन्दर गीत !

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  5. बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां

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    1. हार्दिक आभार भारती जी।

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  6. भावपूर्ण ... मर्म्स्पर्शीय भाव ...

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  7. सुंदर यथार्थ दिखलाता सटीक नवगीत सखी ।

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  8. हार्दिक आभार दी।

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