चुभती है शीतल पुरवाई।
छूट गया पीहर कब पीछे
जग ने कैसी रीत बनाई।
सावन का झूला जब देखा
पीर नीर बन के झरती थी।
लिखने बैठी तुझको पाती
यादें बचपन की भरती थी।
झूला छूटा गुड़िया छूटी
बहना भी अब हुई पराई।
कैसा सावन बिन भैया के
चुभती है शीतल पुरवाई।।
रंग-बिरंगी रेशम डोरी
मैंने दिल की हर आस बुनी।
व्याकुल नयना बाट निहारें
तेरी कहीं न आवाज सुनी।
सुन भाई यह रक्षाबंधन
बिन तेरे लगता दुखदाई ।
कैसा सावन बिन भैया के
चुभती है शीतल पुरवाई।।
बँधी हाथ में रेशम डोरी
पर्व बड़ा पावन मनभावन।
बहना राखी लिए हाथ में
भीग रहा है यादों में मन।
पीर हृदय की बढ़ती जाती
बहना की आँखें भर आई।।
कैसा सावन बिन भैया के
चुभती है शीतल पुरवाई।।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
No comments:
Post a Comment