जिस धरती ने हमें जीवन दिया
आज उस धरती पर
हमारी निगेटिव सोच ने ही
वायरस को जन्म देकर
हमें
पॉजिटिव और निगेटिव
के चक्रव्यूह में फंसा दिया
और अब हम
अभिमन्यु की तरह
बाहर निकलने के
जी तोड़ प्रयास में लगे
मगर रास्ता है कि हमें
नजर नहीं आता
चीखती रातें
सिसकियाँ भरते दिन
जलती आशाओं से
उठती धुएं की रेख
उखड़ती साँसों को थामें
मशीनों के अलार्म
टेढ़ी-मेढ़ी भागती लाइनों में
ज़िंदगी की हलचलों को
ढूँढती
आँखों में नमी लिए
निगेटिव विचारों से घिरी
हर पल ज़िंदगी सोचती
क्या फिर पहले सी
लौट पाएगी हरियाली
जो जीवन और धरती
दोनों के लिए जरूरी थी
या यहीं से किसी और
मंज़िल का सफर शुरू होगा?
पल पल पॉजिटिव
सोच को खत्म करने की आदत से
मानवता आज खुद सहमी हैं
पॉजिटिव शब्द को सुनकर
सृष्टि की अनदेखी कर
आज हमने खुद को
वहाँ खड़ा कर दिया है
जहाँ एक और कुआँ
तो दूसरी और खाई नजर आती है।
©® अनुराधा चौहान'सुधी'✍️
चित्र गूगल से साभार