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Saturday, December 8, 2018

नारी है इसलिए अटल खड़ी है


आंखों में उसके चंचलता
बातों में उसके मोहकता
चलती है जब बल खाकर
लगती जैसे हो मधुशाला

हो स्वर्ग से उतरी हूर कोई
इतनी सुन्दर जैसे हो परी
दिल ममता से भरा हुआ
आंखों में दर्द है कहीं छुपा

तन से कोमल मन से कोमल
चंचल चितवन जैसे कमल नयन
गाल गुलाबी फूलों जैसे
फिर भी चुभती सबको शूलों जैसी

नारी बिना कोई मर्द नहीं
फिर भी दिखता उसका दर्द नहीं
चंचल मन वो सबको दिखाती
अपनी मजबूरी सबसे छुपाती

कुदरत का वो अनमोल नगीना
जिसने की सृष्टि की रचना
सदियों से मन में चाह लिए
उसको भी पूरा मान मिले

औरत है नहीं कोई खिलोना
क्यों उसका सुख-चैन है छीना
देदो उसको भी अधिकार सभी
होंठों पर खिल उठे चंचल हंसी

अपने आत्मसम्मान की खातिर
लड़ती रही और लड़ती रहेगी
चंचल,ज्वाला दोनों रूपों में
नारी है इसलिए अटल खड़ी है
***अनुराधा चौहान***

14 comments:

  1. बहुत सुंदर भावों वाली सुंदर रचना ।

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  2. बहुत सुंदर रचना सखी ।

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  3. बहुत ही सुन्दर सखी 👌

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  4. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/12/99.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय राकेश कुमार जी

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  5. बहुत सुंदर रचना

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  6. नारी की शक्ति उसका धैर्य कहीं अधिक है सभी से ...
    अटल कड़ी रहती है सबके सामने वो ... अच्छी रचना है ...

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  7. बहुत सुंदर भावों से सजी कविता, अनुराधा दी।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद ज्योती जी

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