देख तेरे संसार में प्रभू
कैसे हो रहे हैं अब लोग
जिनको न रिश्तों की फ़िक्र है
न अपनों का कोई जिक्र है
कैसा आया है यह दौर
कैसे हो रहे हैं अब लोग
संवेदनाएं दम तोड़ती
मतलबपरस्ती दिल में बसती
इंसानियत का नहीं कोई मोल
कैसे हो रहे हैं अब लोग
दौलत वाले दौलत को मरते
भूखे दाने-दाने को तरसते
किसान बिचारे कर्ज में दबे
पर दिखे न इनका तोड़
कैसे हो रहे हैं अब लोग
जाने कितने"कर"नए लाते
सुविधाओं के नाम से भुनाते
जनता बातों में आ जाती
वादों की गोली जब खिलाते
यहां सिर्फ वोटों का है मोल
कैसे हो रहे हैं अब लोग
घोटाले करो और उड़ जाओ
देश का धन बाहर ले जाओ
फिर भी कोई पकड़ नहीं है
पैसों की ताकत बड़ी तगड़ी है
ग़रीब पर चलता सबका जोर
कैसे हो रहे हैं अब लोग
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
समय के साथ दम तोड़ती इंसानियत की मार्मिक दास्तां।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/12/101.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteयथार्थ !
ReplyDeleteजी बहुत ही सुंदर रचना।
बदलते दौर का बाहूबी चित्रण ...
ReplyDeleteकई बार तो लगता है जो ऐसा नहीं कर रहा क्या वो सही कर रहा है ... वो बेवकूफ तो नहीं ... सच में नियम बदल गए हैं आज ...
अद्भुत, शानदार और स्तब्ध करता सशक्त लेखन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
Deleteसटीक!
ReplyDeleteदेख तेरे संसार की हालत .…
चिंतन परक रचना ।
बहुत बहुत आभार सखी
Delete