गहन है अंधकार
छाई हुई धुंध है
अजीब सी ख़ामोशी
विचारों का द्वंद है
भेदती इस
ख़ामोशी को
आवाज़ें गहरी
सांसों की
मौन में भी
पसरी है
कोई कहानी
गहरे ख्यालों की
आसमां है टूटते
तारे को देख मौन
हम टूट कर बिखरें
तो लगता है अब
हमारा कौन
मन में उठतेे इन
विचारों का नहीं
कोई जवाब है
टूटकर बिखरना
गिर कर संभलना
जिंदगी पथ पर
सुख-दुख अपार है
गहन अंधकार में
आज छाई धुंध है
होगा प्रकाश
कल खुला आकाश है
***अनुराधा चौहान***
आसमां है टूटते
ReplyDeleteतारे को देख मौन
हम टूट कर बिखरें
तो लगता है अब
हमारा कौन
मन में उठतेे इन
विचारों का नहीं
कोई जवाब है....
बहुत ही सुंदर लिखा है आपने । इस सुख दुख के बीच ही खुला आकाश है। बधाई ।
बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद दी
Deleteभावात्मक प्रतीकों से सजी सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteभावनात्मक सृजन अनुराधा जी ।
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