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Tuesday, December 15, 2020

चित्र से आभास तेरा


 बंद पलकों में तेरा जब
रूप आकर झिलमिलाता।
नीर की फिर बूँद बनकर
नैन भीतर ठहर जाता।

प्रीत के अहसास मन को
सींचते हैं आस बनकर।
और अंकुर बन पनपते
भावना के बीज झरकर।
चित्र से आभास तेरा
स्पर्श आलिंगन कराता।
बंद पलकों में………

दूरियाँ यह कब मिटेगी
रात दिन ये सोचता मन।
साँझ ढलते पीर बढ़ती
बीत जाए न यह जीवन।
बादलों में चाँद छुपकर
रोज मन को है लुभाता।
बंद पलकों में………

सूखकर बिखरे कभी जो
फूल माला में जड़े थे।
प्रीत बन महके अभी वो
टूट धरती अब पड़े थे।
एक झोंका फिर हवा का
नींद से आकर जगाता।
बंद पलकों में………
©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार

15 comments:

  1. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  3. अति सुन्दर.... भावपूर्ण ।

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  4. बहुत सुंदर रचना अनुराधा जी।
    सादर।

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    1. हार्दिक आभार श्वेता जी

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  5. बहुत ही सुंदर सृजन सखी।
    सादर

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  6. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  7. सूखकर बिखरे कभी जो
    फूल माला में जड़े थे.......वाह

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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