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Friday, January 15, 2021

कुछ भी नहीं तेरा


 अपने गौरव की
कहानी कहते यह खंडहर
इंसान को ज़िंदगी की
असलियत दिखलाते
कुछ भी नहीं तेरा
जो इतना इतराता है
इंसान तो माटी का पुतला
एक दिन माटी में मिल जाता है
इन खंडहरों में भी कभी
गूँजा करती थी हँसी 
आज भी इन दीवारों में
कई यादें पुरानी हैं बसी
आँगन में झूले 
चूल्हे पर बर्तन 
खुशियों ने किया होगा
कभी यहाँ नर्तन
नन्हे कदमों की आहट
कभी चुड़ियों की खन खन
पकवान बनाती गृहणी की
पायल की छम छम
आज भी कहती
अपने अस्तित्व की कहानी
समय बदलते बदल जाती
इक पल में जिंदगानी
©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार

5 comments:

  1. खूबसूरत अभिव्यक्ति जीवन सत्य से परिचय कराती हुई..

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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  2. सांसारिक नश्वरता पर हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति । अति सुन्दर सृजन सखी !

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  3. ये असलीअत जितनी जल्दी समझ आ जाये उतना ही अच होता है इंसान के लिए ...
    गहरे भाव ...

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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