अपने गौरव की
कहानी कहते यह खंडहर
इंसान को ज़िंदगी की
असलियत दिखलाते
कुछ भी नहीं तेरा
जो इतना इतराता है
इंसान तो माटी का पुतला
एक दिन माटी में मिल जाता है
इन खंडहरों में भी कभी
गूँजा करती थी हँसी
आज भी इन दीवारों में
कई यादें पुरानी हैं बसी
आँगन में झूले
चूल्हे पर बर्तन
खुशियों ने किया होगा
कभी यहाँ नर्तन
नन्हे कदमों की आहट
कभी चुड़ियों की खन खन
पकवान बनाती गृहणी की
पायल की छम छम
आज भी कहती
अपने अस्तित्व की कहानी
समय बदलते बदल जाती
इक पल में जिंदगानी
©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार
खूबसूरत अभिव्यक्ति जीवन सत्य से परिचय कराती हुई..
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteसांसारिक नश्वरता पर हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति । अति सुन्दर सृजन सखी !
ReplyDeleteये असलीअत जितनी जल्दी समझ आ जाये उतना ही अच होता है इंसान के लिए ...
ReplyDeleteगहरे भाव ...
हार्दिक आभार आदरणीय
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