Followers

Sunday, April 4, 2021

सत्य यही है


 कोमल निर्मल मन,लगे खरा है।
तप्त धरा जैसे,वृक्ष हरा है।

मिथ्या है जीवन,लड़ मत प्राणी।
कहना न किसी से,कड़वी वाणी।
काया की माया,मिली धरा है।
कोमल...

खुशियाँ जीवन की,करके हल्की।
कर्मों की गठरी,भरके छलकी।
भूल गए क्या सच,हृदय मरा है।
कोमल...

मिट जाता जीवन,करते अनबन।
मिलते आपस में,क्यों सब बेमन।
पड़ी काल छाया,जीव डरा है।
कोमल...

रिश्तों की डोरी,कसकर पकड़ो।
गाँठ नहीं अच्छी,जमकर जकड़ो।
मधुर वचन से ही,प्रेम झरा है।
कोमल..
©® अनुराधा चौहान'सुधी' स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार


14 comments:

  1. प्रेम की गंगा बहाते चलो -----

    ReplyDelete
  2. रिश्तों में गाँठ नहीं बस प्रेम छलकाओ
    आपस में अनबन नहीं मन को मिलाओ
    वाणी को थोड़ा सा मीठा कर लो
    मन को भी थोड़ा बस निर्मल धर लो ।
    सुंदर भावों से सजी सुंदर रचना ।

    ReplyDelete
  3. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 09-04-2021) को
    " वोल्गा से गंगा" (चर्चा अंक- 4031)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

    ReplyDelete
  4. वाह बहुत सुंदर सखी ।

    ReplyDelete
  5. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर संदेश देती रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया अनीता जी।

      Delete
  7. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete
  8. रिश्तों की डोरी,कसकर पकड़ो।
    गाँठ नहीं अच्छी,जमकर जकड़ो।
    मधुर वचन से ही,प्रेम झरा है।
    कोमल..बहुत सुन्दर प्रेरक अभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।

      Delete