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Monday, June 21, 2021

टूटे हुए तारे


 टूटे हुए तारे
देख रोए मनुज करणी।
चिंता सरोवर में
चाँदनी डोलती तरणी।

ग्रसती सभी खुशियाँ
कालिमा रात की काली।
छुपती दिखे रजनी
मौत की देख दीवाली।
आहत हुआ अम्बर
और व्याकुल हुई धरणी।
टूटे हुए तारे......

राहें सिसकती सी
चीखती गाड़ियों की धुन।
कागज लिखे साँसे
बेचता रोज ही अब सुन।
सहमा हुआ घर भी
देख अब भीत भी डरणी।
टूटे हुए तारे......

पैसा बना पानी
आज बहता दिखे ऐसा।
सींचा हुआ जीवन
छोड़ता साथ अब कैसा।
डसती नियति खुशियाँ
और चरती रही चरणी‌।
टूटे हुए तारे......
©® अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार

11 comments:

  1. ग्रसती सभी खुशियाँ
    कालिमा रात की काली।
    छुपती दिखे रजनी
    मौत की देख दीवाली।
    आहत हुआ अम्बर
    और व्याकुल हुई धरणी।
    टूटे हुए तारे......

    आज जिस दौर से गुज़र रहे उसका सटीक चित्रण कर दिया है ।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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  2. डसती नियति खुशियाँ
    और चरती रही चरणी‌।
    टूटे हुए तारे......
    बहुत सुन्दर रचना👌

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    1. हार्दिक आभार आ० उषा जी

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  3. बहुत सुंदर रचना।

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    1. हार्दिक आभार ज्योति जी

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२३-0६-२०२१) को 'क़तार'(चर्चा अंक- ४१०४) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  5. हार्दिक आभार शिवम् जी।

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  6. हार्दिक आभार आदरणीय

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  7. आपकी कविता तो अच्छी है अनुराधा जी पर वैसे ही चहुँओर नैराश्य फैला है तो क्या टिप्पणी की जाए, क्या कहा जाए?

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  8. ग्रसती सभी खुशियाँ
    कालिमा रात की काली।
    छुपती दिखे रजनी
    मौत की देख दीवाली।
    आहत हुआ अम्बर
    और व्याकुल हुई धरणी।
    टूटे हुए तारे......
    आज के सत्य को उजागर करती बेहद मार्मिक रचना सखी,सादर नमन आपको

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