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Monday, March 11, 2019

बिखरती कलियाँ

कैसा हवाओं में
जहर-सा  घुला है
मौसम भी अब
सहमा हुआ है
सूना है गुलशन
मासूम किलकारियों से
गुम हो रही हँसी
मासूम परियों की
अब दिखे उज़ड़ी-सी
सारी गलियाँ
गुलशन में नहीं
खिलती अब कलियाँ
असमय ही टूट कर
बिखर जाती हैं
कलियाँ जो अभी
फूल भी न बनी थी
कुचल देते उनके
मासूम सपनों को
अपनी घृणित
मानसिकता के चलते
धूल में मिल गए
जो देखे थे 
सुंदर सपने 
शोषित हुआ बचपन
जिनसे उनमें
कुछ अपने थे
टूटा दिल
असमय तन्हाई
जीवन में आई
मिट गई कोमलता
बचपन की
मासूमियत को
कुचल गई
हाय बेटियों की
यह कैसी नियति
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

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