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Wednesday, March 6, 2019

मैं ही प्रलय हूँ

बसंत की बहार हूँ
फागुन की धूप हूँ
मधुमास का प्यार 
और होली का रंग हूँ
आकाश का मौन हूँ 
पंछियों का कलरव हूँ
लय बद्ध गीत हूँ
हवा का झोंकें में
जीवन की सरगम हूँ
फागुन बसंत मै
 रंगों से सराबोर हूँ
भोर के आँगन में 
बिखरी हुई धूप हूँ
आँखों में लगे काजल-सी 
गहरी काली रात हूँ
बादलों के आँगन में 
 तारों की झिलमिलाहट हूँ
समंदर की लहरों 
का छुपा हुआ क्रौध हूँ
चाँद की मैं चाँदनी
मैं ही ओस की बूँद हूँ
पतझड़ का सूनापन
 बरखा की बहार हूँ
मैं प्रकृति का अद्भुत
अनुपम सौंदर्य हूँ
धरती हूँ आकाश हूँ 
हवा मैं पानी मैं
मुझसे ही ज़िंदगी है 
हाँ मैं सृष्टि हूँ 
सहेज लो समेट लो 
मुझको सँवार लो
बिखर गया रूप तो
मैं ही प्रलय हूँ
***अनुराधा चौहान***

13 comments:

  1. हाँ मैं सृष्टि हूँ
    सहेज लो समेट लो
    मुझको संवार लो
    बिखर गया रूप तो
    मैं ही प्रलय हूँ
    बहुत बहुत बहुत सुंदर रचना ,सच अब सृस्टि प्रलय का रूप दिखा ही रही हैं ,स्नेह सखी

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  2. बहुत खूब..... लाजवाब आदरणीया

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  3. वाह वाह बहुत खूबसूरत रचना सखी मै ही प्रलय हूं ।

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  4. चाँद की मैं चाँदनी
    मैं ही ओस की बूंद हूँ..., वाह !!!
    अत्यंत सुन्दर !!

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  5. नारी हर रूप में हर शै में है जीवन बन कर ...

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  6. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

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  7. बेहतरीन सृजन प्रिय सखी
    सादर

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