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Wednesday, October 21, 2020

नागफनी


 सूने आँगन में
पनपी नागफनी।
जीवन की राहें
बिखरी आस कनी।

उड़ती है अम्बर
धुआँ द्वेष रेखा।
पल भर में बदला
काल रचा लेखा।
प्रीत पुरानी सब
भूले आज मनी।

पलटी किस्मत जब
स्वप्न राख ढेरी।
चुभते कंटक से
राह खड़े बैरी।
आज तोड़ते सब
चुभती जो टहनी।

चलो बदल डाले
जगती की रचना।
सुंदर सृजन की
फिर हो संरचना
हर्षित होगा मन
महकेगी अवनी।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***

8 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२४-१०-२०२०) को 'स्नेह-रूपी जल' (चर्चा अंक- ३८६४) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  3. बहुत सुंदर सृजन सखी नागफनी के माध्यम से सुंदर संदेश देती रचना।

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