सूने आँगन में
पनपी नागफनी।
जीवन की राहें
बिखरी आस कनी।
उड़ती है अम्बर
धुआँ द्वेष रेखा।
पल भर में बदला
काल रचा लेखा।
प्रीत पुरानी सब
भूले आज मनी।
पलटी किस्मत जब
स्वप्न राख ढेरी।
चुभते कंटक से
राह खड़े बैरी।
आज तोड़ते सब
चुभती जो टहनी।
चलो बदल डाले
जगती की रचना।
सुंदर सृजन की
फिर हो संरचना
हर्षित होगा मन
महकेगी अवनी।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
धन्यवाद आदरणीय
Deleteवाह, बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteधन्यवाद शिवम् जी
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२४-१०-२०२०) को 'स्नेह-रूपी जल' (चर्चा अंक- ३८६४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
सहृदय आभार सखी
Deleteबहुत सुंदर सृजन सखी नागफनी के माध्यम से सुंदर संदेश देती रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
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