Followers

Wednesday, May 22, 2019

रहस्यमयी गलीचे

सुनहरे अश्वो पर सवार हो
सिंदूरी गलीचे पर चलके
सूर्य आया रश्मियों के साथ
जीवन में उजाला भरने

बिखरी हुई रश्मियों ने
छुआ ज्यों ही कलियों को
उतार ओस का घूँघट
हँसी कलियाँ तितलियों को

भोर का सुखद अहसास लिए
चहक उठा जीवन भी
निकल पड़े सब घर से
ज़िंदगी जीने अपनी-अपनी

बिछाए सुनहरा गलीचा
देते दिनकर जीवन की धूप
शाम को समेटकर उजाला
क्षितिज के छोर पर गया छुप

बिछ गई अँधेरे की चादर
रात आई ख्व़ाबों को लेकर
चाँद मुस्कुराया आसमान में
तारों का गलीचा बिछाकर

चमचमाती हुई चाँदनी
अँधेरे से रातभर लड़ती
सुबह सवेरे थककर चूर
चाँद से लिपट सो जाती

सूर्य उदय की पुनः तैयारी
कर रथ पे सवार हो आता
इस दिन-रात के फेर में
ज़िंदगी चलती अपनी धुन में

समय का चक्र भी चलता रहता
रहस्यमयी गलीचों से गुजर
ज़िंदगी भी चलती रहती है
इन गलीचोें पर कुछ खोजती

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

22 comments:

  1. बेहतरीन संयोजन सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. सहृदय आभार रितु जी

      Delete
  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23-05-19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3344 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

    ReplyDelete
  3. वाह!!सखी ,बहुत सुंदर!!

    ReplyDelete
  4. धन्यवाद आदरणीय

    ReplyDelete
  5. सुंदर अभिव्यक्ति,मैम....

    ReplyDelete
  6. भावनाओं की भावपूर्ण अभिव्यक्ति । सराहनीय प्रस्तुति । आभार ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete
  7. बेहतरीन रचना सखी 👌
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. सहृदय आभार प्रिय सखी

      Delete
  8. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 27 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  9. वाह.. बहुत सुंदर रचना..

    ReplyDelete
    Replies
    1. सहृदय आभार पम्मी जी

      Delete
  10. समय का चक्र भी चलता रहता
    रहस्यमयी गलीचों से गुजर
    ज़िंदगी भी चलती रहती है
    इन गलीचोें पर कुछ खोजती
    बेहतरीन रचना.... सखी

    ReplyDelete
  11. वाह बहुत सुन्दर प्रकृति के सुंदर तिलिस्मी गलीचे।
    अप्रतिम सुंदर सखी ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदयतल से आभार प्रिय सखी

      Delete
  12. समय का चक्र भी चलता रहता
    रहस्यमयी गलीचों से गुजर
    ज़िंदगी भी चलती रहती है
    इन गलीचोें पर कुछ खोजती
    सृष्टि पर नजर दौडाते हुए समय के चक्कर को बहुत ही सार्थकता से लिख दिया आपने प्रिय अनुराधा जी | गलीचे के बहाने से एक और सुंदर सृजन | सस्नेह

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रिय रेणु जी आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मेरी मेहनत सफल कर देती है सस्नेह आभार सखी

      Delete