फागुन की फुहार।
कह रही पुरवाई हौले,
छेड़ दिल के तार।
मंद चलती पवन बसंती,
मन मोहे झूमती।
बागों में कोयल की तान,
कान रस घोलती।
खोल घूँघट हँसतीं कलियाँ,
खिल आई बहार।
क्या झूमोगे साथ मेरे,
फागुन की फुहार।।
फागुन की फुहार।।
सुहानी हर भोर झूमके,
तार मन छेड़ती।
ऋतुराज संग खिल सुनहरी,
धूप तन सेंकती।
धड़कन का हर साज बोले,
बसंत ही बहार।
क्या झूमोगे साथ मेरे,
फागुन की फुहार।।
फागुन की फुहार।।
फूले पीले फूल सरसों,
चूनर लरहाए।
मधुमास के रंग रंगी,
हवा तन सुहाए।
बरसते हैं रंग घनेरे,
अद्भुत है बहार।
क्या झूमोगे साथ मेरे,
फागुन की फुहार।।
***अनुराधा चौहान***
प्रेम का मौसम बसंत।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है- लोकतंत्र
सुंदर भाव
ReplyDeleteहार्दिक आभार दी
Deleteवाह बहुत सुंदर सखी! बहुत सुंदर नव गीत आपका फाल्गुनी फाग सा मनोरम ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी 🌹
Deleteवाहहहह सखी!!! फागुन की इस फुहार में तो तन मन सब भीग गया👌👌👌👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी 🌹
Deleteप्रशंसनीय
ReplyDelete.. वाह बहुत खूबसूरत कहा इतनी अच्छी कविता के साथ मन जरूर झूमने लगेगा फागुन के साथ
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी 🌹
Deleteबसन्त बहार के खूबसूरती और कोमल भावों से सजी मनोरम रचना सखी !! अति सुन्दर ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
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