Followers

Saturday, February 8, 2020

अनु की कुण्डलियाँ-१०

55
मेरा
तेरा मेरा सोच के, बीते जीवन शाम,
माला लेकर हाथ में,जपते सीता राम।
जपते सीता राम,करे चुगली हर उसकी।
अपना सीना तान,जड़ें काटें कब किसकी।
कहती अनु यह देख,करे जो मेरा मेरा।
छोड़े सब फिर साथ,रहो करते फिर तेरा ।

56
सबका
सबका मालिक एक है,सबका दाता राम।
पीड़ा मनकी एक है,करना है आराम।
करना है आराम,मिले सब बैठे ठाले।
मिलता रहे अनाज,नहीं खाने के लाले।
आलस तन पे ओढ़,मिटा हर कोई तबका।
करले श्रम फिर आज,चले यह जीवन सबका।

57
आगे
आगे आगे हम चले,पीछे चलता काल,
मानव सच से भागता, होता फिर बेहाल,
होता फिर बेहाल,समय पल पल है बीते।
रोता फिर बेताल,लिए हाथों को रीते।
कहती अनु यह देख,सत्य से कब तक भागे।
करले अच्छे काम,चलो सब सबसे  आगे।

58
सावन
सावन में पानी नहीं, सरदी में बरसात।
जाने कैसा हो रहा,मौसम अब दिन रात।
मौसम अब दिन रात,कभी भी रूप बदलता।
गर्मी हो विकराल,लगे फिर जीवन जलता।
कहती अनु सुन बात,कभी था ये मनभावन।
भादों की क्या बात,नहीं बरसे अब सावन।

59
जाना
माया के वश में फँसा,छोड़े घर-परिवार।
जाना सबको एक दिन,दुनिया के उस पार।
दुनिया के उस पार,करे क्यों मारामारी।
लालच की लत छोड़,बुरी है यह बीमारी।
धन के पीछे दौड़,किसी ने सुख है पाया।
मिलता सुख परिवार,बड़ी यह ठगनी माया‌।

60
करना
पल-पल बीते दिन यहाँ,ढलती जीवन शाम
करना जीवन में हमें,कोई अच्छा काम।
कोई अच्छा काम,भला हो निर्बल मन का।
करता जगत प्रणाम,बना वो संगी जन का।
कहती अनु सुन बात,किसी को दे सुख हरपल।
मिलता दूना लौट,वही पल घूमे पल-पल

***अनुराधा चौहान***

No comments:

Post a Comment