आज दलदल में फँसे,
हैं प्राण भी।
खींचते पल-पल फँसे,
हैं पाँव भी।
डूबते तिनका दिखा,
मन आस है।
है अजब माया रचे,
भ्रम पास है।
आग में झुलसे फँसे।
है जान भी।
आज दलदल में फँसे,
है प्राण भी।।
रोकते कैसे भला।
गुबार उठा,
बने झूठे बहाने,
उबार उठा।
टूटती आशा फँसी,
है नाव भी।
आज दलदल में फँसे,
है प्राण भी।।
मिटा न अँधेरा यहाँ,
कब भोर हो।
धोखाधड़ी का सदा,
ही शोर हो।
आँख ज्योति छीण हुई,
है आस भी।
आज दलदल में फँसे,
है प्राण भी।।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बहुत ही सुंदर सखी ,सादर नमन
ReplyDeleteहार्दिक आभार यशोदा जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार राधा जी
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