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Tuesday, February 25, 2020

कल्पना

कल्पना ये कल्पना है,
आपके बिन सब अधूरी।
शब्द जालों में उलझती,
बनी नहीं कविता पूरी।।

मौन रहकर सोचता मन,
आग यह कैसी लगी है।
हर तरफ उठता धुआँ है,
 स्वप्न चिंगारी लगी है।
ढूँढ़ते अब राख में हम ,
सुलगे हुए स्वप्न सिंदूरी
शब्द जालों में उलझती,
बनी नहीं कविता पूरी।।

कल्पना ये कल्पना है,
आपके बिन सब अधूरी।
शब्द जालों में उलझती,
बनी नहीं कविता पूरी।।

छोड़ के जिन रास्तों को,
यह कदम आगे बढ़े थे।
लौट आना हुआ मुश्किल,
प्राण संकट में पड़े थे।
अब वजह मिलती नहीं है,
ज़िंदगी रह गई अधूरी।
शब्द जालों में उलझती,
बनी नहीं कविता पूरी।।

कल्पना ये कल्पना है,
आपके बिन सब अधूरी।
शब्द जालों में उलझती,
बनी नहीं कविता पूरी।।

***अनुराधा चौहान*** 
चित्र गूगल से साभार

18 comments:

  1. कल्पना का अपना ही रंग होता है कविता उसके बिना अधूरी है
    बहुत सुन्दर

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 28 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक आभार यशोदा जी।

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  3. कल्पना ये कल्पना है,
    आपके बिन सब अधूरी।
    शब्द जालों में उलझती,
    बनी नहीं कविता पूरी।।
    .........सुंदर रचना। शुभकामनाएं ।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (28-02-2020) को धर्म -मज़हब का मरम (चर्चाअंक -3625 ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    आँचल पाण्डेय

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    1. हार्दिक बधाई आदरणीया

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  5. ढूँढ़ते अब राख में हम ,
    सुलगे हुए स्वप्न सिंदूरी
    शब्द जालों में उलझती,
    बनी नहीं कविता पूरी।।
    वाह!!!
    लाजवाब नवगीत...

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  6. बहुत सुंदर कविता।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  7. वाह!सखी ,खूबसूरत सृजन ।

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  8. कल्पना और कव‍िता की ये आंखम‍िचोली और दोनों का चोली दामन की तरह के संग को आपने बखूबी बयान क‍िया है अनुराधा जी

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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  9. शब्द जालों में उलझती,
    बनी नहीं कविता पूरी।।
    वाह!!!
    लाजवाब नवगीत...
    वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग :)
    शब्दों की मुस्कराहट पर आपका स्वागत है

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  10. बहुत सुन्दर सृजन
    शब्द जालों में उलझती
    बनी नहीं कविता पूरी

    लाजवाब 👌👌👌👌

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