पुरवा सुगंध सुमन भरी
पवन बसंती डोल रही।
आशा की रंग-बिरंगी
पतंग नभ में डोल रही।
पीत रंग ओढ चुनरिया
फागुन रस में झूम रहा।
मधुमास भरे रंग कई
मधुमास भरे रंग कई
हवाओं संग डोल रहा
कुंज-कुंज भंवरे डोलें
राग बहार छेड़ रही।
पुरवा..
वसुधा कर उठी श्रृंगार
ऋतु बासंती आ गई।
लरजती हुई डाली पे
कली खिली औ महक गई।
चंदा संग चमक-चमक,
चंद्रिका खिलखिला रही।
पुरवा...
सजते द्वार वंदनवार
बसंत की बहार में।
खिल उठे डाली पलास
जैसे दहकते प्यार में
लहर-लहर पुरवाई भी
कोई धुन गुनगुना रही।
पुरवा...
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
चित्र गूगल से साभार
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 06 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteवाहः
ReplyDeleteबढ़ियाँ लेखन
हार्दिक आभार दीदी
Deleteवाह बासंती गीत बूहद सुंदर सृजन अनुराधा जी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteबसंत का सुंदर गुणगान ,बहुत खूब सखी
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(11-02-2020 ) को " "प्रेमदिवस नजदीक" "(चर्चा अंक - 3608) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार सखी 🌹
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