बादलों ने ली अंगड़ाई,
खिलखिलाई ये धरा भी।
चंचला चमकती है आई,
झिलमिलाई ये धरा भी।
छूती मेरे तन को हौले
पवन चले हौले-हौले।
उड़ता जाए भीगा आँचल
मुखड़ा से लट कुछ बोले।
दूर कहीं से आई उड़के
यादें झम से झाँक उठी।
अन्तर्मन की बातें सुनके
खिड़की पे आके बैठी।।
पेड़ों से लिपटी इतराई
किलकिलाई ये लता भी।
बादलों ने ली अंगड़ाई
खिलखिलाई ये धरा भी।।
कलियाँ चटकी खुुशबू फैले
धरती है महकी महकी।
रिमझिम रिमझिम बरसे बरखा
बूँदे हैं थिरकी थिरकी।
झूम रहा है तरुवर उपवन
झूम रहा है ये मन भी।
पल्लव पल-पल छेड़ रहे धुन
धरती झूमे जीवन भी।।
भीग वसुंधरा जब नहाई
लहलहाई ये धरा भी।।
बादलों ने ली अंगड़ाई
खिलखिलाई ये धरा भी।।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुंदर सृजन सखी।
ReplyDeleteसुंदर गीत ।
हार्दिक आभार सखी 🌹
Deleteहार्दिक आभार आदरणीय
ReplyDeleteसुन्दर मधुर भाव भरी रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार दी
Deleteबहुत ही सुंदर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
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