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Wednesday, August 15, 2018

पूनम का चाँद

पूनम की रात थी
काले बादलों का डेरा था
चाँद की चाँदनी पर
लगा बादलों का पहरा था
फैले घने अंधियारे में
इक अजीब बैचेनी सी
कर रही प्रिय का इंतजार
वो थी कुछ सहमी हुई
देख उसके मन की व्यथा
हवा उसे सहलाने लगी
सन्नाटे को चीरने के लिए
कोई धुन वो गुनगुनाने लगी
अंधेरे को दूर करने
जुगनू भी मंडराने लगे
देख कर यह नजारा
बदली भी सब समझ गई
कर चाँद को आजाद
कुछ दूर वो सरक गई
छिटक चाँद से चाँदनी
धरा को रोशन कर गई
रोशनी में देख किसी साये को
वो जाकर उससे लिपट गई
देख पूनम के चाँद को
वो भी मुस्काने लगी
पूनम की यह रात
पिया मन भानें लगी
***अनुराधा चौहान***

11 comments:

  1. वाह !!!आप की रचना ने पूनम के चांद को और हसीन बना दिया

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  2. छिटक चाँद से चाँदनी
    धरा को रोशन कर गई
    रोशनी में देख किसी साये को
    वो जाकर उससे लिपट गई
    देख पूनम के चाँद को
    वो भी मुस्काने लगी
    पूनम की यह रात
    पिया मन भानें लगी
    .
    वाह्ह श्रृंगार की भरमार से लबालब रचना...

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  3. कोमल एहसासों से सुसज्जित बहुत प्यारी रचना अनुराधा जी ।
    वो थी कुछ सहमी हुई
    देख उसके मन की व्यथा
    हवा उसे सहलाने लगी
    सन्नाटे को चीरने के लिए
    कोई धुन वो गुनगुनाने लगी।
    अप्रतिम लावण्य।

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  4. वाह बहुत सुन्दर रचना

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  5. Replies
    1. हार्दिक आभार विजय जी।

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